जैविक खेती(Organic Farming)
जैविक खेती अपनाइये, भूमि की जान बचाइये।
अधिक पैदावार बढ़ाकर, खेती की लागत घटाइये।।
जैविक खेती का अर्थ कृषि पद्धति है जिसमें रासायनिक खादों एवं दवाओं के स्थान पर देशी तरीकों जैसे- गोबर, कूड़ा- कचरा, वानस्पतिक पदार्थों से बनी चीजों के प्रयोग से खेती की जाती है। आज के समय में रासायनिक खादों व दवाओं के प्रयोग से खेती करना महंगा तो है ही, लेकिन उससे जमीन भी खराब हो रही है। इस तरह पैदा अन्न, फल-सब्जी खाकर मनुष्यों में कई बीमारियां भी फैल रही हैं। अतः जैविक तरीके अपनाने से भूमि में सुधार तो होगा ही साथ ही नाम मात्र के खर्चे से खेती पर होने वाले बहुत सारे खर्च से बचाकर बहुत सारा लाभ प्राप्त किया जा सकेगा।
प्रमुख जैविक विधियां निम्नालिखित हैं:-
1.हरी खाद:- कुछ वर्षों पहले किसान बंधु सनई, ढेंचा, उड़द, मूंग,मक्का आदि फसल बोकर फूल आने पर खेत में काट कर बिखेर देते थे, जिससे बहुत अच्छी खाद फसलों को मिलती थी व खेती भी सुधरती थी। आज फिर इसकी जरूरत है।अतः हरी खद का उपयोग अवश्य करें।
2.मुर्गी खाद:-मुर्गी की बीट खाद के रूप में बहुत उपयोग किया जाने लगा है। इससे भूमि सुधरकर पैदावार बढ़ती है। 10-15 क्विंटल प्रति बीघा मुर्गी खाद का उपयोग करना चाहिए।
3.जीवाणु कल्चर खाद:-यहअति सूक्ष्म जीवाणु का समूह खाद के रूप में होता है।इससे पैदावार बढ़ने के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।राइजोबियम, पी.एस.बी., एजेक्टोबैक्टर जीवाणु कल्चर प्रमुख है।जिन्हें बौनी के समय बीज में प्रति किलो 3 ग्राम मिलाकर या बौनी के बाद 1 पैकेट राइजोबियम कल्चर (सोयाबीन) या एजेक्टोबैक्टर (ज्वार, मक्का हेतु) 1 पैकेट पी.एस.बी. कल्चर, 2 तगाड़ी मिट्टी, 4 तगाड़ी गोबर खाद मिलाकर छिड़काव करें।
4.केंचुआ खाद:-केंचुआ किसान का परम मित्र है जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बनाकर रखता है वर्मी कल्चर विधि से 5×20×1.5 फीट जगह में 2 माह में 6-8 क्विंटल एवं वर्ष में 60 क्विंटल खाद बनाई जा सकती है। प्रतिवर्ष हजारों रुपए केंचुआ बेचने से कमाए जा सकते हैं। केंचुआ धोने से प्राप्त पानी टॉनिक का काम करता है।
जैविक विधियों से कीड़ एवं रोगों की रोकथाम के उपाय
वर्तमान में किन फसलों में कीड़े एवं रोगों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिससे किसानों को महंगी दवाईयां डालनी पड़ती हैं। इससे जहां भूमि के मित्र कीट व पक्षी नष्ट हो रहे हैंं। वहीं उपज से प्राप्त अनाज, सब्जी, दलहन, तिलहन खाकर मनुष्य एवं पशुओं के शरीर पर बीमारी व आलस्य के दुष्परिणाम दिखाई दे रहे हैं। अतः कम खर्च व घर में उपलब्ध सामग्री द्वारा तैयार की गई विधियों को अपनाकर स्वस्थ व हानिरहित फसल प्राप्त हो सकेगी।
1.गौमूत्र:- गौमूत्र को कांच के बर्तन में भरकर रख सकते हैं ।1स्प्रेयर पंप के पानी में 200 मि.ग्राम गौमूत्र फसल बुआई के 15दिन बाद से प्रति 10दिन में छिड़काव करने से फसलों में कीट, रोग प्रतरोधी क्षमता विकसित हो जाती है।
2.नीम:- नीम की 15-20 किग्रा.पत्तियों को एक ड्रम में 4 दिनों तक भिगोकर छांव में रख , हरे पीले पानी में इतना पानी मिलायें कि उसमें झाग आ जाये । इसे पंप की सहायता से छिड़काव करें।
3.छाछ का प्रयोग :- एक मटके में छाछ भरकर उसे प्लास्टिक से मुँह बांधकर 1माह ( अधिक दिन भी) के लिए रख दें। इसके बाद एक पंप में 250 ग्राम की दर से डाल कर स्प्रे करें , इल्ली व अन्य कीट रोग की रोक कर सकते हैं ।
4.बेशरम पत्ती :- यह बहुत जहरीली होती है । 2 किग्रा. पत्ती को 5 लीटर पानी में उबालें , जब पानी आधा रह जाये तब उसे ठंडा कर लें व प्रति पम्प 1 गिलास की दर से छिडकाव करें ।
5.तम्बाकू पत्ती :- आधा किलो तम्बाकू पत्ती या डंठल 5 लीटर पानी में उबालें तथा आधा रहने पर ठंडा कर प्रति पम्प 1 गिलास की दर र से प्रति एकड़ छिड़कें ।
6.मिर्च-लहसुन :- आधा किलो हरी मिर्च एवं आधा किलो लहसुन पीसकर चटनी बनायें । इसे पानी में घोल कर छान लें । इसमें 100 लीटर पानी एवं 100 ग्राम वाशिंग पाउडर मिलायें । प्रति पम्प 1 गिलास मिलाकर छिड़कें।
7.हींग का प्रयोग :- खेतों में दीमक (उदी) की रोकथाम हेतु 200 ग्राम हींग की पोटली बनाकर खेत में पानी के पाइप के पास लकड़ी से बांधकर पानी में डाल दें । वह घुलकर जमीन में पहुँचेगी व दीपक को नष्ट कर देगी ।
8.लकड़ी की राख :- 10 किलो राख में 100 ग्राम मिट्टी का तेल मिलाकर भुरकने से माहू पर नियंत्रण होता है।
9.अन्तरवर्तीय खेती :- खेत में एक फसल की कतारों के बाद दूसरी फसल की कतार लगानें से कीट रोग नहीं फैल पाते हैं ; जैसे - सोयबीन की 4 कतार के बाद 2 कतार मक्का या ज्वार या अरहर लगाएं ।
10.प्रकाश प्रपंच :- रात्रि को खेत में बल्ब जलाकर उस पर तेल अथवा कागज या चमकीला पन्ना लगाएं । नीचे तगारी में थोड़ मिट्टी का तेल मिलाकर पानी भरें। जिससे उड़ने वाले कीड़े आकर्षित होकर आपस में टकराने से पानी में गिरकर नष्ट हो जायेंगे।
11.लकड़यां गाड़ना :- खेत में फसल से थोड़े ऊँचे आकार की बबूल की लेड़िया गाड़ें । जिस पर पक्षी बैठकर कीड़ों को खा जाते हैं। एक पक्षी एक दिन में अपने वजन बराबर कीड़ खाता है।
12.एन. पी. वापरस :- यह घोल इल्लियों से ही बनाया जाता है। इसके छिड़काव से झल्लियां बीमार होकर मर जाती हैं । जिन्हें इकट्ठा कर पीसकर घोल बनाकर फसलों पर पुनः छिड़काव करते रहते हैं।
13.टॉनिक :- बायवडिंग पीसकर 1 किलो , 10 लीटर पानी में 3 - 4 दिन तक भिगोयें , मसलकर छान लें । इसमें 10 लीटर गोमूत्र मिला लें , प्रति पम्प 10 मि. ग्राम मिलाकर फसल पर छिडकाव करें।
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